ये जो तुम रोज़ ज़ुल्फें मेरे चेहरे पर बिखराके मुझे जगाती हो,
ऐ हसीन, नाज़नी ये बता दो कमीनी तेरे जुएं तो न हैं ?
साधारण लोग- Bathroom जाना है..
शायर साहब-
मचलती हैं पेट में कुछ लहरें सी,
लगता हैं इन्हें किसी किनारे का इंतज़ार है..
माना की तेरी नजर में कुछ भी नहीं हु मैं,
मेरी कदर उनसे पूछ जिनसे मैंने उधार ले रखें हैं….
खिड़की खुली, ज़ुल्फें बिखरी दिल ने कहा दिलदार निकला,
पर हाय रे मेरी फूटी किस्मत नहाया हुआ “सरदार” निकला….
आज बोसे उन के गिन गिन के लिए
दिन गिना करते थे इस दिन के लिए….– क़वी अमरोहवी