Deepawali Shayari, Diwali Shayari

पटाखों की दुकान से दूर हाथों मे, कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा….

एक गरीब बच्चे की आखों मे, मैने दिवाली को मरते देखा….

थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की, पर उन्हीं पुराने कपड़ों को मैने उसे साफ करते देखा….

हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश, उसे चुप-चाप ग़मो को पीते देखा….

जब मैने कहा, “बच्चे, क्या चहिये तुम्हे”?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर “ना” मे सिर हिलाते
देखा….

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी, पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा….

रात को सारे शहर के दीपों की लौ में, मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरे को देखा….

हम तो ज़िन्दा हैं अभी शान से यहा, पर उसे जीते जी शान से मरते देखा….

लोग कहते है, त्योहार होते हैं  जि़दगी में खुशियों के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन में घुटते और तरस्ते
देखा?

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